Monday 21 July 2014

बादल

ना समझ इन्हें फकत प्यार की निशानी
ये मशहूर है अपना रंग बदलने के लिए
ये होते है कभी नर्म से रुई जैसे गोले
और कभी बन जाते है तूफानी ओले
पर इन्हें देख कर मिलता है सुकून
खेतों में देते है ये जान इक नयी
जब देखो इनका रोद्र रूप तुम भी
समझ जाना इक बवंडर आने को हैं
बम्बई की सडको को ये अपने रस से भरे
ओस बन कर कई फूलों पर मिले
ना हैं कोई इन सा निराला और प्यारा
ये हैं बादलो का घना छाया !!






Picture copyright - ShutteR'n'ExposE by HeenA



4 comments:

  1. Arrey waah ... yeh mast hai ... this should be added in Hindi textbooks in school curriculum ... very nice poem :-)

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  2. Amrit - Thank you so very much dear .. I'm humbled by your gesture :)

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